क्या हम माता-पिता फेल हो रहे हैं

क्या हम Parents फेल हो रहे हैं ?

क्या हम माता-पिता फेल हो रहे हैं

.क्या हम Parents फेल हो रहे हैं ?

डॉ. स्वतन्त्र जैन
मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता 

1980 के दशक में एक दिन जब मैं अपनी PHD के कार्य में व्यस्त थी, मेरी पांच वर्षीय बेटी हाथों में गुलाब का फूल लिये सुबह-सवेरे मेरे पास आकर कहने लगी,

'मम्मी, आप हमेशा मुझे अकेला छोड़कर काम शुरु कर देती हो, आपका काम खत्म ही नहीं होता।'

और मेरे कुछ जवाब देने से पहले ही मुझे फूल देते हुए उसने बड़े प्यार से कहा,

'मैं आपके लिये फूल लायी  हूं, इसे अपनी फाईल में रख लो, इसमें भगवान हैं, वे आपका सब काम जल्दी से पूरा कर देंगे।'

उसकी प्यार-भरी बातों से गदगद हो, मैंने उसे प्यार से अपनी गोद में बैठाकर सीने से लगाते हुए कहा,

'मेरी गुडिय़ा, फूलों में भगवान तो हैं, पर इनमें जान भी होती है। इन्हें भी तोडऩे-मड़ोड़ने मसलने से दर्द होता है जो हमें दिखाई नहीं पड़ता। इसीलिये पेड़-पौधे, जीव-जन्तुओं या इंसानों को अपने गलत काम या व्यवहार से चोट नहीं पहुंचानी चाहिये'।

कुछ देर सोचने के बाद बिटिया ने मुझे वचन दिया कि वह कभी आगे से ऐसा नहीं करेगी।

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दोस्तों, आपने देखा कि मैं कैसे अपनी बिटिया के दिलो-दिमाग में उसके बचपन से ही जीव-अजीव सभी प्राणियों के लिये प्यार-ममता एवं करुणा का बीज बोने में सफल हुई। किंतु सभी पेरेंट्स अपने बच्चों में सकारात्मकता जैसे सामाजिक गुण व श्रेष्ठ संस्कार देने के अपने कर्तव्य के लिये सजग नहीं होते। आमतौर पर पेरेंटस अपने बच्चों में बढ़ती अनुशासनहीनता, बड़ों के प्रति अनादर, स्वार्थीपन, आवेगशीलता, असहिष्णुता, आत्मकेन्द्रियता एवं उनकी दूसरों की पीड़ा के प्रति बढती उदासीनता से चिंतित रहते हैं।

दूसरों की ज़रूरतों, अधिकारों, भावनाओं एवं कष्टों के प्रति संवेदनहीन मानसिकता/रवैया हमारे नौजवानों को अपनी भावनाएं आक्रामक/हिंसक ढंग से जताने-प्रकट करने की ओर ध्केल रही है। बिना परिश्रम किये ही शिक्षा, नौकरी-पैसा समेत सभी कुछ आसानी से हासिल करने की बढ़ती प्रवृति से हमारे यूथ धेखाधड़ी, लूट-जालसाज़ी जैसे ग़लत, असामाजिक और घिनौने कृत्यों की ओर बढ़ रहे हैं। रातों-रात अमीर बन जाने का ख्वाब उन्हें हर-तरह के आपराधिक कृत्यों जैसे चोरी, हत्या व किडनेपिंग तक करने के लिये प्रेरित कर रहा है। हम सोचते हें कि हमारा बेटा ऐसा नहीं हो सकता, परंतु यदि हमारा अपना बच्चा/नौजवान बेटा किसी उपरोक्त या सैक्स-अपराध में शामिल पाया जाए तो किसका दोष है? क्या हम पेरेंटस उसके जि़म्मेवार नहीं? हम कैसे फेल हो गये उन्हें बच्चियों और औरतों के प्रति सही नज़रिया देने में? उनके गुस्से-ईष्र्या, लोभ-लालच, मोह-वासना को नियंत्रित कर सही दिशा देने में? क्या यह हम पेरेंट्स का दायित्व नहीं है?


यद्यपि हमारे सभी नौजवान अपराधिकता की ओर नहीं बढ़ रहे, उनमें गहन जीवन-मूल्यों की तो कमी है ही। उनके भीतर से सबसे ज्यादा आरोग्य (हीलिंग) व पोषक तत्वों  को बाहर निकालने के लिये श्रेष्ठत्तम मूल्यों को सींचने वाली वात्सल्य-प्रेमपूर्ण समुदाय की आवश्यकता होती है। जलवायु परिवर्तन एवं अन्य वातावरणीय आपदाओं के कारण हमारा ग्रह-पृथ्वी पतन के कगार पर है। हम और हमारी युवा पीढ़ी इसे देख नहीं पा रहे। हर बच्चे-किशोर व youth को हमारे समय की सच्चाई को अच्छी तरह जानने-समझने के लिये कई स्किल्स की आवश्यकता है, अन्यथा वे ऐसी सभी चीज़ों की ओर आकर्षित होते रहेंगे जो उन्हें  ओछा आदर-सत्कार, ताकत या पैसा उपलब्ध करा सके।

हमारा youth कहां जा रहा है?


हम सब के लिये यह एक गंभीर प्रश्न होना चाहिये कि 'हमारा youth कहां जा रहा है? वे क्या चाहते हैं? आखिऱ वे क्या करने पर उतारू हैं? क्यों वे कानून-व्यवस्था को सम्मान देने और बरकरार रखने वाली गतिविधियों के बजाए धोख़ा-धड़ी व कानून-भंग करने की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं? क्यों वे इतने निराश, मायूस, स्वार्थी, कर्तव्य-विमुख़ हो भावनाात्मक संतुलन खो रहे हैं, और क्यों वे सामाजिक मूल्यों एवं ताने-बाने की सभी सीमाएं पार करने की सोचते रहते हैं? उनके जीवन-मूल्यों में इतनी तेजी से गिरावट क्यों? इन सबके लिये कौन उत्तरदायी है आखिऱ?'


हमारे यूथ की इस अवस्था के लिये हम शायद उनके अघ्यापकों को दोष दें कि वे बच्चों के साथ आत्मीय संबंध नहीं बना पाते या पेरेंट्स को उनके ग़लत जीवन-मूल्यों के लिये, या फिर वैश्विक मास-मीडिया को जिसके कारण हमारे बच्चे-यूथ टीवी-मोबाईल के स्क्रीन से चिपके रहते हैं! हम इसका कारण संयुक्त परिवार-प्रणाली (जो हमें छोटे-बड़ों को प्यार व आदर करना, आपसी सहयोग व भाईचारा, त्याग, धैर्य, निस्वार्थभाव, सहनशीलता व आज्ञा-पालन जैसे सामाजिक गुण सिखाती थी) का विघटन भी मान सकते हैं जिसने एकल-परिवार और ऐसी संस्कृति को जन्म दिया जहां पति-पत्नी दोनों के नौकरी करने से उन्हें अपने बच्चों संग गुणात्मक समय बिताने और आत्मीय संबंध बनाने का समय ही नहीं मिलता।  

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मनोविज्ञान की विद्यार्थी, टीचर और एक पेरेंट होने के नाते मैं इस सारे विषय को समग्रता से रखना चाहूंगी। प्रत्येक बच्चा सम्पूर्ण ब्रह्मांड का एक सूक्ष्म-रूप है और जन्म-समय से ही समस्त ब्रह्मांड की दैविक और दानवीय सभी वृतियां उसे विरासत में मिलती हैं। कई भारतीय दार्शनिकों एवं प्रसिद्ध मनोविश्लेषक कार्ल जूंग के अनुसार, 'प्रत्येक बच्चे को अपने व्यक्तिगत अचेतन मन के साथ-साथ एक सांझा अचेतन मन भी विरासत में मिलता है, जिसे 'संयुक्त-सांझा अचेतन' कहते हैं, जिसमे सभी श्रेष्ठ एवं नीच-घटिया संस्कार भरे रहते हैं।

सभी पेरेंटस व टीचर्स का यह सांझा दायित्व है कि वे बच्चों को उस सांझे खज़ाने से अच्छे-श्रेष्ठ संस्कार बाहर निकालने मे मदद करे (जैसे मैंने अपने ऊपर दिये उदाहरण में अपनी बेटी मे सभी प्राणियों के प्रति करुणा का संस्कार बाहर निकालने का सफल प्रयास किया।) इसी तरह हम सभी अच्छे व सकारात्मक गुणों को प्रोत्साहन देकर अच्छे गुणों को बाहर निकालने और बुरे गुणों को निरुत्साहित कर उन्हें अव्छी दिशा में मोड़ कर उन्हें परिवार-समाज व देश के लिये जिम्मेवार और आत्म-निर्भर व्यक्ति बनाने में मदद कर सकते हैं।

परिवार ही बच्चे की प्रथम पाठशाला और पेरेंट्स उसके प्रथम अध्यापक हैं


यद्यपि हम अपने समाज की सभी समस्याओं के लिये पेरेंट्स को पूर्णतय: जिम्मेवार नहीं ठहरा सकते परंतु हम इस सच्चाई से भी इंकार नहीं कर सकते कि परिवार ही बच्चे की प्रथम पाठशाला और पेरेंट्स उसके प्रथम अध्यापक हैं। सभी किस्म की जिम्मेवारियों का मुख्य-प्रथम हिस्सा पेरेंट्स को ही जाता है क्योंकि बच्चों के चरित्र की नींव प्रथम सात वर्षों में ही पड़ती है जो वे अपने पेरेंट्स के साथ ही बिताते हैं। यही वह समय है जब उनमें अपनी आदतों-दृष्टिकोण, जीवनमूल्य-चरित्र, पसंद-नापसंद, पूर्वाग्रह-पक्षपात, जज़्बात-भावनाएं एवं चिंता-डर आदि की मज़बूत नींव पड़ती है और जब पेरेंटस अपने बच्चों को एक स्वस्थ-खुशनुमा व सकाराात्मक माहौल देकर अपने विवेक एवं जज़्बातों का सही-सामाजिक मान-मर्यादाओं के अनुरूप प्रयोग करने में मदद कर सकते हैं। किंतु वही पेरेंट्स भावनात्मक रूप से अशांत व उग्र माहौल और नकारात्मकता को प्रोत्साहित करके उसी प्रक्रिया को बिल्कुल विपरीत भी कर सकती है।


दोस्तों, ऐसे तेजी से बदलते वैश्विक परिदृष्य में, जब कल्पनातीत विज्ञापनों और उनके आस-पास हर-पल बदलते बाज़ार दृश्य के कारण हमारे यूथ के दिलो-दिमाग पर भयानक प्रभाव पड़ रहा हो। जब वे स्वयं अपने, विद्यार्थियों एवं नागरिकों से संबंधित अधिकारों के बारे सतत जागरूक हो रहे हैं, जब उनके दिलो-दिमाग में अश्लील साहित्य/वीडियो का ज़हर लगातार घोला जा रहा हो, जब समग्र जीवन-मूल्य नष्टप्राय: से हो गए हो, ऐसे नाज़ुक समय में पेरेंट्स की कठिनाइयां दोगुनी नहीं बल्कि तिगुनी-चौगुनी बढ़ गई हैं। अब बच्चों की परवरिश उतनी आसान नहीं जितनी दशकों पहले होती थी।

पेरेंट्स को अपने बच्चों से बात करते समय सावधानी बरतने की जरूरत है

 हमारी नई पीढ़ी के बच्चे उत्तरोत्तर पहले के मुकाबले कंही ज्यादा बौद्धिक और भावनात्मक योग्यता वाले पैदा हो रहे हैं। वे हमारे शब्दों, भाव-भंगिमाओं एवं व्यवहार को अपने नज़रिये से देखते-सुनते-परखते और प्रतिक्रिया करते हैं। हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते कि हमारी किस बात पर वे भड़क-बेकाबू हो गये या दु:खी हो गये। हमारा एक ग़लत शब्द, भाव-भंंगमा या प्रतिक्रिया उन्हें सारी उम्र  हमारे या अपने विरुद्ध बागी बना सकती है। मेरी एक अत्याधिक चिंता-ग्रस्त क्लाइंट ने Counseling के दौरान बताया,

'मेरे पापा मुझसे नफरत करते हैं।

' मैंने पूछा, 'तुम्हें ऐसा क्यों लगता है, कुछ उदाहरण दो'?

 'क्योकि वे मुझपर विश्वास ही नहीं करते, वे हर जगह मेरे भाई को मेरे साथ या मेरे पीछे भेज देते हैं, मुझे कहींं अकेले जाने ही नहीं देते।'

उसकी गलत धारणा बदलने एवं यह विश्वास दिलाने में पूरे दो सैशन लग गये कि वे उसे नफरत नहीं, प्यार करते हैं और सभी पिताओं की तरह डरते हैं कि कहीं उनकी सुंदर-प्यारी सी बेटी पर कोई बुरी नजर ना डाल दे।' अत: किसी के लिये भी यह सराहने के लिये अकेला यह उदाहरण ही पर्याप्त है कि हम पेरेंट्स को अपने बच्चों से बात करते समय कितनी सावधानी बरतने की जरूरत है।


इसलिये अच्छा भोजन, कपड़े, सुख-सुविधाएं देना, उनकी सभी वाजि़ब-गैरवाजिब बातें मानना, महंगे स्कूलों में पढ़ाना ही बेहतरीन parenting skills की कसौटी नहीं। Parenting बारे बहुत-कुछ सीखना है हमें, जैसे उन्हें अनुशासित करने के सर्वोत्तम उपाय क्या हैं, हम ऐसा क्या करें कि बच्चे हमारा विरोध करने के बजाए हमारे साथ खड़े हों, उनकी चिंता, डर व तनाव को कैसे कम करें, एसर्टिव स्किल्स (assertive skills) कैसे सिखाएं, अपने गुस्से व नकारात्मक जज़्बातों को प्रबंधित करना और स्वतंत्रता से निर्णय लेना व आत्मनिर्भर बनना आदि कैसे सिखएं?


सारांश यह कि पेरेंट्स को पेरेंटिंग स्किल्स की सख्त ज़रूरत है। अमरीका पश्चिमी और अन्य विकसित देशों में बच्चों की परवरिश- स्टाईल के लिये कई गाइडेंस केंद्र व क्लिनिक्स हैं। भारत में भी पेरेंटिंग चुनौती के लिये इनकी सख्त आवश्यकता है। उस विषय पर हम और चर्चा करेंगे।